Dhadak 2 Review: ‘धड़क 2’ तमिल फिल्म ‘परियेरम पेरुमल’ (2018) का हिंदी रीमेक है, जो 1 अगस्त 2025 को रिलीज हुई। शाजिया इकबाल के निर्देशन में बनी यह फिल्म जातिवाद और फेमिनिज्म जैसे गंभीर मुद्दों को उठाती है। सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी की जोड़ी कहानी में जान डालने की कोशिश करती है, लेकिन कमजोर राइटिंग और रूटीन ट्रीटमेंट इसे ‘सैराट’ (2016) या ‘परियेरम पेरुमल’ की ऊंचाई तक नहीं पहुंचने देता। फिर भी, सिद्धांत की दमदार परफॉर्मेंस और फिल्म का सशक्त मैसेज इसे देखने लायक बनाते हैं। आइए, पांच कारणों से समझते हैं कि ‘धड़क 2’ कहां चमकती है और कहां रह जाती है पीछे।
सिद्धांत चतुर्वेदी का करिश्मा | Dhadak 2 Review
सिद्धांत चतुर्वेदी नीलेश अहिरवार के किरदार में जान डाल देते हैं। एक दलित युवक, जो बचपन से भेदभाव झेलकर वकील बनने का सपना देखता है, उनके अभिनय से जीवंत हो उठता है। खासकर क्लाइमेक्स में सिद्धांत का इमोशनल आउटबर्स्ट दर्शकों को बांधे रखता है। उनकी बॉडी लैंग्वेज और डायलॉग डिलीवरी ‘धड़क 2’ को वजन देती है। अगर राइटिंग और मजबूत होती, तो यह सिद्धांत के करियर की सबसे यादगार फिल्म बन सकती थी।
दलित संघर्ष का सशक्त चित्रण | Dhadak 2 Review
‘धड़क 2’ दलित पहचान और सामाजिक अन्याय को संवेदनशीलता से दिखाने में कामयाब है। नीलेश के बचपन से लेकर यूनिवर्सिटी तक के भेदभाव, उसकी मां (अनुभा फतेहपुरा) का बस्ती की प्रधान के रूप में संघर्ष और शेखर (प्रियांक तिवारी) का आंदोलन सबप्लॉट्स कहानी को गहराई देते हैं। फिल्म बाबा साहेब आंबेडकर और गौतम बुद्ध के प्रतीकों का इस्तेमाल करती है, हालांकि नीले रंग और मेकअप के जरिए दलित पहचान दिखाना थोड़ा पुराना लगता है। फिर भी, यह फिल्म सही दिशा में एक कदम है।
सपोर्टिंग कास्ट का दम | Supporting Cast Ka Dam
फिल्म की सहायक कास्ट कहानी को और मजबूत बनाती है। सौरभ सचदेवा का सनकी हत्यारा शंकर किरदार डरावना और प्रभावशाली है, जो अपनी बैकग्राउंड स्टोरी के साथ फिल्म की हाईलाइट बनता है। विपिन शर्मा (नीलेश के पिता) और अनुभा फतेहपुरा छोटे रोल्स में भी प्रभाव छोड़ते हैं। प्रियांक तिवारी का शेखर और जाकिर हुसैन का प्रिंसिपल रोल भी याद रहता है। ये परफॉर्मेंस कमजोर स्क्रिप्ट को संभालने में मदद करती हैं।
कमजोर लव स्टोरी | Kamzor Love Story
‘धड़क 2’ की सबसे बड़ी कमी है इसकी लव स्टोरी। नीलेश और विधि (तृप्ति डिमरी) का रोमांस सतही और कमजोर लगता है। विधि का किरदार राइटिंग में इतना कमजोर है कि वह अपनी प्रेम कहानी की गंभीरता को समझ ही नहीं पाती। तृप्ति का अभिनय ठीक है, लेकिन उनके किरदार को गहराई नहीं मिली। फेमिनिज्म का एंगल भी बेसिक और बिखरा हुआ लगता है, जो नीलेश की कहानी से ध्यान भटकाता है। यह कमजोरी फिल्म को ‘सैराट’ जैसी इमोशनल ताकत से दूर रखती है।
मैसेज में है दम, ट्रीटमेंट में कमी | Message Mein Hai Dam, Treatment Mein Kami
‘धड़क 2’ जातिवाद और लैंगिक भेदभाव पर सशक्त मैसेज देती है, लेकिन इसका ट्रीटमेंट रूटीन और बॉलीवुडिया है। प्रतीकों का अतिरेक और मैकेनिकल स्क्रीनप्ले कहानी को साधारण बनाते हैं। गाने मधुर हैं, लेकिन वे कहानी को धीमा करते हैं। फिर भी, फिल्म का संवेदनशील नैरेटिव और दलित संघर्ष का चित्रण इसे कई बॉलीवुड फिल्मों से बेहतर बनाता है। सेकंड हाफ में नीलेश का स्ट्रगल माहौल बनाता है, लेकिन स्क्रिप्ट की कमियां इसे पूर्ण प्रभावशाली होने से रोकती हैं।
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